रमजान के मुबारक महीने का आगमन है और दुनिया भर में कोविड 19 नामक महामारी फैल रहा है। मस्जिदें बंद हैं, तमाम इबादत गाहों पर ताला पड़ा हैं, सभी प्रकार के समारोहों पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
सारा संसार भयभीत है, आदमी आदमी से दूर भाग रहा है; दुनिया के कुछ मुल्कों में लोग अपनों की लाशों को सड़क पर लावारिस छोड़ दे रहे हैं, कोई उनकी आखिरी रस्मों को अदा करने के लिए तैयार नहीं है,बच्चे माता पिता के शवों को और माता-पिता बच्चों के शवों को कीड़े और क्रूर जानवरों की दया पर छोड़ रहे हैं।
रमज़ान का मुबारक महीना आ रहा है और पूरी दुनिया डर के साये में जी रही है, मैदान कयामत के दिन आंखों के सामने घूम रहा है, ऐसा महसूस हो रहा है जैसे रब तआला कह रहा हो: "लेमनिल मुल्कुल यौम "(आज किसका राज्य है?) और फिर वह स्वयं जवाब दे रहा है, अल्लाह के लिए जो एक है और क़ह्हार है।
यह बीमारी इतनी नई है कि इसकी कोई दवा नहीं है। केवल सावधानी को इसका इलाज माना जा रहा है, लेकिन केवल इतना कि यदि आप सावधानी बरतते हैं, तो सुरक्षित होने की संभावना है और यदि नहीं तो बहुत संभव है कि इसके चंगुल में आ जायेंगे ।
हालाँकि, अभी तक कोई भी इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह पाया है। एक बात बहुत अधिक बताई जा रही है कि यदि रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर है, तो अतिरिक्त सावधानी बरतें।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण के कारण बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से परेशान लोगों, मधुमेह और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका अधिक होती है.
कोरोना वायरस का इलाज इस बात पर आधारित होता है कि मरीज़ के शरीर को सांस लेने में मदद की जाए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर ख़ुद वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए.
शोध के अनुसार,फ़िलहाल , सावधानी और इंसान की रोग प्रतिरोधक शक्ति से ही इस बीमारी से बचाव की संभावना बढ़ सकती है और अगर इसका प्रकोप होता है, तो यही दोनो चीजें काम आएँगी।
अब समस्या यह है कि रमजान में एक महीने का रोज़ा होता है जिसमें रोज़ेदार सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाता पीता , इसलिए यह किसी के भी मन में आ सकता है कि यदि हम खाएंगे नहीं तो हमारी प्रतिरोधक छमता कम हो सकती है, लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं। आधुनिक और प्राचीन दोनों शोधों से पता चला है कि रोज़ा रखने से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है, कम कभी नहीं होती है।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने शोध में पाया कि शरीर को भूखा रखने से स्टेम कोशिकाएं संक्रमण से लड़ने वाली नई श्वेत रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यह खुलासा उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी हो सकता है जो एक खराब प्रतिरोध प्रणाली से पीड़ित हैं ... - यह उन बूढ़े लोगों को लाभान्वित करेगा जिनकी प्रतिरोधक प्रणाली उम्र बढ़ने के कारण रोग पर कम प्रभाव डाल पाते हैं , जिसकी वजह से वह सामान्य बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते हैं।
एक अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका में अकाल से पीड़ित लोगों में मलेरिया और टीबी रोग होने की संभावना कम थी, उनकी तुलना में जो प्रवासी कैंपों में खाते पीते अफ्रीकी थे ... अकाल से उनकी प्रतिरोधक छमता मजबूत हुई थी।
अल जज़ीरा अखबार ने इस विषय पर एक बहुत ही शोधपूर्ण लेख प्रकाशित किया, लेखक ने लिखा: "एक अमेरिकी डॉक्टर मार्क फाडून कहते हैं कि निश्चित रूप से, हर किसी को रोज़ा रखना चाहिए, भले ही रोगी न हो क्योंकि विषाक्त पदार्थ शरीर में जमा होते हैं तो शरीर को बीमार बनाते हैं, भारी करते हैं, चुस्ती फुर्ती में कमी लाते हैं, लेकिन जब जब रोज़ा रखते हैं, तो शरीर पूरी तरह से साफ हो जाता है, ताज़ा हो जाता है ...
एक रूसी प्रोफेसर निकोलाई बेल्वी के अनुसार: “प्रत्येक मनुष्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह वर्ष में चार सप्ताह भोजन न करे ताकि वह जीवन भर स्वस्थ रहे।
उपरोक्त रिसर्च और कई अन्य रेसरीचेस ने साबित किया है कि रोज़ा इंसान की प्रतिरोधक छमता को कम नहीं करता है बल्कि इसे बढ़ाता है।
रब तआला का फरमान है : (और रोज़ा रखना तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है यदि तुम्हें जानकारी हो ! हमारे रब ने अपने कलाम में इसकी तरफ किस तरह इशारा फरमा दिया है, रोज़ा अच्छा है, इसमें लाभ ही लाभ है, दीन के लिए भी और दुनिया के लिए भी, शर्त यह है कि आपको ज्ञान हो।पैग़म्बरे इस्लाम (ﷺ) ने फ़रमाया : - रोज़ा रखो स्वस्थ रहोगे ...
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Wow
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