कहने को तो दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है, लेकिन क्या उसने कर ली है? इस वक़्त तो हमें ऐसा है कि इंसान सात आठ सौ साल पहले जहां था आज भी वहीं है, ऐसी भी रिपोर्ट से आई हैं कि इंसान इस वक्त अपनी बुद्धि के चरम सीमा को पहुंचा हुआ है, मगर क्या वाकई ऐसा है? इस वक्त तो हमें ऐसा नहीं लगता। इंसान जितना मजबूर कल था आज भी है। निसंदेह इंसान कमजोर ही है।
एक महामारी फैलती है, हजारों लोगों को मौत की नींद सुला देती है, हजारों करोड़ों मेडिकल साइंटिस्ट इस के आगे घुटने टेक देते हैं, हाथ खड़े कर देते हैं, असहाय और विफल रह जाते हैं, उनके पास कोई दवा नहीं कोई इलाज नहीं बस वही सदियों पुराना बल्कि दकियानूसी रोक थाम के तरीके ही काम से काम चलाया जा रहा है "समाजी दूरी और क्वारंटाइन" आधुनिक इंसान और पुराना तरीका इलाज, हैरत इस बात पर है कि बहुत कम लोगों को इस बात पर हैरत है
क्या है क्वारंटाइन?
इतालवी शब्द quqrantino से बना है, जिसका अर्थ 40 दिन का वक्त होता है, एड्रियाटिक सागर के बंदरगाही शहर रगुसा (डिब्रूनिक) ने 14वीं सदी में काली मौत (गिल्टी वाले फ्लैग) की भारी तबाही के वक्त एक कानून पास किया जिसके मुताबिक शहर में आने वाली तमाम जहाजों और तिजारती काफिलों के लिए यह लाजिम किया गया कि उनको उस वक्त तक किसी से मिलने जुलने ना दिया जाए और उन्हें बिल्कुल तन्हाई में रखा जाए जब तक कि यह साबित ना हो जाए कि उनके अंदर था फ्लैग की महामारी की बीमारी नहीं है।
इस हुक्मनामा (जिसके डिब्रोनिक के आर्काइव में बच जाना बजाय खुद हैरतअंगेज है) में लिखा है कि 27 जुलाई 1377 को शहर की उच्च काउंसिल ने कानून पास किया, जिसमें यह मुतालबा था कि जो फ्लैग ग्रसित इलाकों से आते हैं उन्हें रागुसा या उसके जिलों में उस वक्त तक दाखिल नहीं होने दिया जाएगा जब तक कि वह एक महीना मर्कान टापू में या क्यूटाट कस्बे में गुजार न लें ताकि बीमारी बेअसर हो जाए।
हिस्ट्री डॉट कॉम के मुताबिक पहले उन्होंने 30 दिन के क्वारंटाइन की मुद्दत रखी, इसलिए इस तरीके इलाज को पहले टोरंटिनो कहा गया फिर इसाई मजहब में चूंकि 40 का अदद बहुत पवित्र माना जाता है इसलिए इसे बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया और इस तरीके इलाज को क्वारंटाइनो कहा गया यानी ऐसा इलाज जिसमें 40 दिन अलग-थलग रखकर बीमारी को खत्म किया जाता है ताकि उसकी बीमारी दूसरों को ना लगे, अंग्रेजी जुबान में यह लफ्ज़ क्वारंटाइन बन गया।
आजकल यह लफ्ज़ पूरी दुनिया में फिर से चलन में आ गया है जो उसका तलफ्फुज भी नहीं कर पाता वह भी बोलने की कोशिश करता है, कारण ये है कि पूरी दुनिया में नोबेल कोरोना वायरस की महामारी फैल चुकी है और हर मुल्क इस मर्ज की रोकथाम के लिए यही तरीका इस्तेमाल कर रहा है
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